बेटी को बहार जाना था तो पिता ने हा कहा, लेकिन देर रात को जब पुलिस का फ़ोन आया तो उन्होंने कहा…..Part-2
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स्टेशन पहुँचकर रमेश साहेब की आँखें फटी रह गईं। सामने कई लड़के-लड़कियाँ बैठे थे, जिनके चेहरे शर्म से झुके हुए थे। और उनमें, स्नेहा भी अपनी आँखें झुकाए बैठी थी। रमेश साहेब को एक पल में ही सब कुछ समझ में आ गया।
अधिकारी ने आते ही वर्मा साहेब से कहा, “वर्माजी, आपकी बेटी और ये बाकी लड़के-लड़कियाँ शहर के बाहर फार्महाउस में ड्रग्स के साथ रेव पार्टी करते पकड़े गए हैं। आप अपने बच्चों को क्या संस्कार दे रहे हैं? ऐसा क्या हो गया कि आपने उसे इतनी रात को बाहर जाने दिया? ये तो शर्म की बात है।”
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वर्मा साहेब का सिर शर्म से झुक गया। उनके अंदर निराशा और दुःख का सागर उमड़ पड़ा। उन्होंने अपनी बेटी पर इतना भरोसा किया था, उसे आज़ादी दी थी कि वह अपनी ज़िम्मेदारियों को समझेगी। लेकिन स्नेहा ने उनके भरोसे को तोड़ दिया। उनके दिल में एक ही सवाल घूम रहा था—स्नेहा ने उनके विश्वास के साथ ऐसा क्यों किया?
स्नेहा ने अपने पापा की तरफ देखा, उसकी आँखों में पछतावा था। उसे लग रहा था कि वह रात का मजा लेकर घर वापस चली जाएगी और सब सामान्य हो जाएगा। लेकिन अब उसे अपनी गलती का एहसास हो चुका था। उसने अपने माता-पिता के भरोसे के साथ खेला था, और अब उसके पास केवल शर्मिंदगी थी।