बेटी को बहार जाना था तो पिता ने हा कहा, लेकिन देर रात को जब पुलिस का फ़ोन आया तो उन्होंने कहा…..
वर्मा साहेब का परिवार शांति और अनुशासन वाला था। उनकी बेटी, स्नेहा, पढ़ाई में होशियार थी और घर के नियमों का पालन करती थी। स्नेहा की माँ, मीनाक्षी, हमेशा उसकी पढ़ाई और भविष्य को लेकर चिंतित रहतीं, लेकिन उसके पिता, रमेश वर्मा, अपनी बेटी पर पूरा भरोसा करते थे।
एक दिन स्नेहा अपनी पढ़ाई के लिए किताबें समेट रही थी। उसने अचानक कहा, “मम्मी, मैं सोच रही थी कि आज रात को नेहा के घर रह जाऊँ। हमें कल मैथ्स की टेस्ट की तैयारी करनी है, तो साथ में पढ़ाई हो जाएगी।” मीनाक्षी ने थोड़ी चिंता के साथ कहा, “बेटा, रात में दूसरों के घर रहना ठीक नहीं लगता। पढ़ाई घर में भी हो सकती है।”
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स्नेहा ने थोड़ी जिद के साथ कहा, “मम्मी, पापा से पूछो, वो तो मुझे जाने देते।” मीनाक्षी कुछ कहने की कोशिश कर ही रही थी, लेकिन तब तक स्नेहा ने रमेश साहेब को बुला लिया। रमेश साहेब आते ही बोले, “अरे, जाने दो। दोस्तों के साथ पढ़ाई करना भी ज़रूरी है। भरोसा करना सीखो।”
स्नेहा ने अपने पिता को धन्यवाद दिया और हँसते हुए स्कूटी लेकर निकल पड़ी।
रात का लगभग एक बजे का समय था। रमेश साहेब बिस्तर पर थे, तभी अचानक फोन की घंटी ने उन्हें चौंका दिया। वे डरते हुए फोन उठाते हैं। दूसरी तरफ से किसी अधिकारी की गंभीर आवाज आई, “श्रीमान वर्मा, आपको तुरंत पुलिस स्टेशन आना होगा।” रमेश साहेब का दिल तेजी से धड़कने लगा। उनके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे—कहीं स्नेहा के साथ कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई?