4 दिनों से बेटी ग़ायब थी, चौथे दिन अचानक बेटी घर लोटी, दरवाज़ा खोला तो बेटी …..Last Part
अनु्ष्का ने गहरी साँस ली और बोलने लगी, “मम्मी, जब मैं काम खत्म करके होटल वापस जा रही थी, तो हमारी टीम के कुछ लोग मिले। उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट की सफलता की पार्टी है और मुझे आना ही होगा। मैंने उन्हें कहा कि मुझे ट्रेन पकड़नी है, लेकिन उन्होंने जबरदस्ती मुझे आने के लिए दबाव डाला। मैंने ज्यादा कुछ न कहकर हाँ कर दी और अपने कमरे में चली गई।”
मीना ने आश्चर्य से पूछा, “फिर क्या हुआ?”
“मम्मी, मुझे तुरंत शक हुआ कि ये लोग हमारी टीम के नहीं हैं। मैंने तुरंत बैग पैक किया और होटल से निकलने का फैसला किया। लेकिन जब मैं होटल से बाहर जा रही थी, तब वे लोग वहीं खड़े थे और बात कर रहे थे कि मुझ पर भरोसा नहीं किया जा सकता, मैं भाग भी सकती हूँ। इसलिए उन्होंने दो लोगों को स्टेशन पर मुझे रोकने के लिए खड़ा किया था।”
मीना ने चिंतित होकर पूछा, “फिर क्या हुआ?”
अनु्ष्का की आँखों में डर साफ झलकने लगा। “मम्मी, मैं बहुत डर गई थी। मुझे लगा कि मेरे साथ कुछ बुरा होने वाला है। लेकिन फिर मैंने सोचा कि अगर मैं आज डर गई, तो मैं अपने आत्मसम्मान और पहचान को खो दूँगी। मैंने हिम्मत की और वहाँ से छिपकर भाग निकली। उन्होंने मुझे देख लिया, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैं स्टेशन जाने की बजाय बस स्टैंड पहुँची और वहाँ से इंदौर की जगह सीधा गुजरात चली गई ताकि वे मेरा पीछा न कर सकें।”
“मम्मी, वे लोग मेरे पीछे पड़े थे, लेकिन मैंने भी हार नहीं मानी। मैं पुलिस के पास गई और उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। उन्हें जेल भिजवा दिया। उसके बाद ही मुझे शांति मिली और मैं सीधे घर आ गई।”
अनु्ष्का की आँखों में आँसू थे, लेकिन उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की झलक थी। “मम्मी, पापा, मैंने कुछ गलत नहीं किया और न ही आपका मान-सम्मान खोया।”
विनय, जो अब तक चुप थे, एक गहरी साँस लेकर बोले, “शाबाश, बेटा। आज मुझे तुम पर गर्व है।” उनके चेहरे पर गर्व और प्यार के भाव थे। मीना ने भी अनु्ष्का को गले लगा लिया।
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